परिचय: वैश्विक और राष्ट्रीय असमानता की कठोर सच्चाई
हाल ही में जारी वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026, जिसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों लुकास शांसेल, रिकार्डो गोमेज़-कारेरा, रोवैदा मोशरिफ़ और थॉमस पिकेटी ने संपादित किया है, ने वैश्विक स्तर पर और भारत में संपत्ति के संकेंद्रण से जुड़ा चौंकाने वाला डेटा प्रस्तुत किया है। यह निष्कर्ष केवल नीति-निर्माताओं के लिए ही नहीं, बल्कि UPSC IAS, IFS और अन्य सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
यह रिपोर्ट नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ और अर्थशास्त्री जयती घोष की भूमिका (प्रस्तावना) के साथ प्रकाशित हुई है। यह दुनिया भर के 200 से अधिक विद्वानों द्वारा किए गए शोध पर आधारित है और 21वीं सदी की असमानताओं—आय, संपत्ति, लिंग, जलवायु और मानव पूंजी तक पहुंच—पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
भारत की स्थिति: दुनिया के सबसे असमान देशों में
संपत्ति और आय में चिंताजनक असमानताएं
भारत दुनिया के सबसे अधिक आर्थिक रूप से असमान देशों में से एक के रूप में उभरता है। पिछले एक दशक में असमानता के संकेतकों में बहुत कम सुधार हुआ है। आंकड़े अत्यंत चिंताजनक हैं:
शीर्ष 10% की संपत्ति हिस्सेदारी: भारत के सबसे अमीर 10% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 65%
शीर्ष 1% की संपत्ति हिस्सेदारी: सबसे अमीर 1% के पास देश की कुल संपत्ति का लगभग 40% — जो 1980 में केवल 12.5% थी
आय असमानता: शीर्ष 10% आय अर्जक राष्ट्रीय आय का 58% प्राप्त करते हैं, जबकि निचले 50% को केवल 15%
एलीट की पूर्व-कर आय: शीर्ष 1% अब कुल पूर्व-कर आय का 22.6% अर्जित करता है, जो 1980 में 7.3% था
भारत की आबादी के लिए इसका क्या अर्थ है
भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति आय लगभग $6,984 (PPP) है, जबकि औसत संपत्ति लगभग $32,592 है। लेकिन ये आंकड़े संसाधनों के अत्यधिक संकेंद्रण को छुपाते हैं:
निचले 50% भारतीय: कुल संपत्ति का केवल अत्यंत छोटा हिस्सा रखते हैं
मध्य 40%: बीच में दबे हुए हैं, आर्थिक गतिशीलता बहुत सीमित है
शीर्ष 1%: अभूतपूर्व गति से संपत्ति जमा कर रहा है
वैश्विक असमानता का परिप्रेक्ष्य: बढ़ती खाई
वैश्विक संपत्ति संकेंद्रण ऐतिहासिक चरम पर
रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर संपत्ति वितरण की गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करती है:
शीर्ष 0.001%: विश्व स्तर पर 60,000 से भी कम मल्टीमिलियनेयर, पूरी मानवता के निचले 50% (लगभग 4.1 अरब लोग) से तीन गुना अधिक संपत्ति रखते हैं
शीर्ष 10% (वैश्विक): शेष 90% से अधिक आय अर्जित करते हैं
निचले 50% की संपत्ति हिस्सेदारी: विश्व की कुल संपत्ति का केवल 2%, जबकि वे जनसंख्या का आधा हिस्सा हैं
अत्यधिक अमीरों की वृद्धि: शीर्ष 0.001% की संपत्ति 1995 में 4% से बढ़कर 2025 में 6% हो गई
वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के सात प्रमुख निष्कर्ष
1. वैश्विक स्तर पर चरम असमानता बनी हुई है और बढ़ रही है
वैश्विक संपत्ति संकेंद्रण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। यह स्थिर नहीं बल्कि लगातार बढ़ रहा है। अत्यंत अमीर व्यक्ति और कॉरपोरेशन पहले से भी तेज़ी से संपत्ति जमा कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक समाजों के लिए अस्थिर और सतत विकास के लिए चुनौतीपूर्ण है।
2. भारत में गहराई से जमी संरचनात्मक असमानताएं
रिपोर्ट के अनुसार:
“कुल मिलाकर, भारत में आय, संपत्ति और लिंग—तीनों आयामों में असमानता गहराई से जमी हुई है, जो अर्थव्यवस्था के भीतर स्थायी संरचनात्मक विभाजनों को उजागर करती है।”
भारत का मामला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि:
चीन के विपरीत, जिसने मध्यम वर्ग का विस्तार किया है, भारत ने वैश्विक स्तर पर अपेक्षाकृत पिछड़ना शुरू किया है
1980 में भारत की बड़ी आबादी मध्य 40% आय वर्ग में थी; आज लगभग सभी निचले 50% में हैं
जाति-आधारित संपत्ति असमानता आर्थिक असमानता को और गहरा करती है—लगभग 90% भारतीय अरबपतियों की संपत्ति उच्च जातियों के नियंत्रण में है
3. जलवायु परिवर्तन: असमान उत्सर्जन, असमान प्रभाव
रिपोर्ट का एक सबसे गंभीर निष्कर्ष जलवायु जिम्मेदारी और भेद्यता से जुड़ा है:
शीर्ष 10% का उत्सर्जन योगदान: निजी संपत्ति से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन का 77%
निचले 50% का उत्सर्जन हिस्सा: केवल 3%
विरोधाभास: जो सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं, वे ही इसके प्रभावों से बचने में सबसे सक्षम हैं
हकीकत: सबसे गरीब आबादी, जिन्होंने सबसे कम योगदान दिया, जलवायु आपदाओं का सबसे अधिक बोझ उठाती है
यह आयाम भारत की जलवायु संवेदनशीलता और वैश्विक जलवायु वार्ताओं में न्याय के प्रश्न को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
4. लैंगिक वेतन अंतर: लगातार बना हुआ और बढ़ता हुआ
रिपोर्ट गंभीर लैंगिक असमानता को दर्ज करती है:
महिलाओं की श्रम आय हिस्सेदारी: वैश्विक स्तर पर केवल 25%, 1990 से लगभग अपरिवर्तित
वेतन अंतर (अवैतनिक कार्य को छोड़कर): महिलाएं प्रति घंटे पुरुषों की मजदूरी का केवल 61% कमाती हैं
समावेशी माप (अवैतनिक कार्य सहित): प्रभावी आय पुरुषों की केवल 32% रह जाती है
क्षेत्रीय भिन्नताएं:
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका: 16%
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया: 20%
उप-सहारा अफ्रीका: 28%
पूर्वी एशिया: 34%
भारत में महिला श्रम भागीदारी विशेष रूप से चिंताजनक रूप से कम—15.7%, और पिछले दशक में कोई सुधार नहीं।
5. क्षेत्रीय और भौगोलिक असमानताएं
उत्तरी अमेरिका व ओशिनिया: औसत दैनिक आय €125
उप-सहारा अफ्रीका: औसत दैनिक आय केवल €10
प्रति बच्चे शिक्षा खर्च (PPP):
उप-सहारा अफ्रीका: €200
यूरोप: €7,400
उत्तरी अमेरिका व ओशिनिया: €9,000
यह 1:40 का अंतर दर्शाता है—जो प्रति व्यक्ति GDP अंतर से तीन गुना अधिक है।
6. वैश्विक वित्तीय प्रणाली अमीर देशों के पक्ष में
रिज़र्व करेंसी लाभ: अमेरिका जैसे देश कम ब्याज पर उधार लेते हैं और ऊंची दरों पर उधार देते हैं
वार्षिक संपत्ति हस्तांतरण: वैश्विक GDP का लगभग 1% हर साल गरीब देशों से अमीर देशों की ओर
यह राशि वैश्विक विकास सहायता से लगभग तीन गुना है
भारत पर प्रभाव: उच्च उधारी लागत, पूंजी पलायन, वैश्विक बचत तक सीमित पहुंच
7. प्रगतिशील कर प्रणाली और पुनर्वितरण समाधान
अत्यधिक अमीर लोग मध्य वर्ग की तुलना में अनुपातिक रूप से कम कर देते हैं
अरबपतियों पर प्रभावी कर दर गिरती जाती है
3% वैश्विक संपत्ति कर (100,000 से कम अरबपतियों पर) से $750 अरब/वर्ष जुटाए जा सकते हैं
यह राशि सभी निम्न और मध्यम आय वाले देशों के कुल शिक्षा बजट के बराबर है
भारत-विशिष्ट अंतर्दृष्टि: असमानता भारत के लिए क्यों मायने रखती है
जाति और संपत्ति संकेंद्रण
88.4% अरबपति संपत्ति उच्च जातियों के पास
SC/ST सबसे अधिक वंचित
SC के केवल 12.3% और ST के 5.4% उच्चतम संपत्ति पंचमांश में
SC के 25% और ST के 46.3% निम्नतम पंचमांश में
कर भार असमानता
निचले 50% भारतीय 64% GST का भुगतान करते हैं
शीर्ष 10% केवल 4% GST
स्वास्थ्य सेवा संकट
हर वर्ष 6.3 करोड़ भारतीय स्वास्थ्य खर्च के कारण गरीबी में धकेले जाते हैं
प्रतियोगी परीक्षा अभ्यर्थियों के लिए मुख्य बिंदु
| विषय | UPSC के लिए प्रमुख बिंदु |
|---|---|
| असमानता सूचकांक | गिनी गुणांक, पाल्मा अनुपात |
| भारत का विकास | GDP वृद्धि के बावजूद असमानता |
| लैंगिक मुद्दे | महिला श्रम भागीदारी, अवैतनिक कार्य |
| जलवायु न्याय | उत्सर्जन बनाम प्रभाव |
| कर नीति | प्रगतिशील बनाम प्रतिगामी कर |
| जाति और अर्थव्यवस्था | सामाजिक बहिष्करण |
| वैश्विक वित्त | रिज़र्व करेंसी लाभ |
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और विशेषज्ञ विचार
थॉमस पिकेटी: “समानता की दिशा में बढ़े बिना सामाजिक और जलवायु चुनौतियों का समाधान संभव नहीं।”
जोसेफ स्टिग्लिट्ज़: “अत्यधिक असमानता अपरिहार्य नहीं है—नीतियों से इसे कम किया जा सकता है।”
जयती घोष: असमानता इतिहास और संस्थागत शक्ति संरचनाओं का परिणाम है।
रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित नीति समाधान
प्रगतिशील कर प्रणाली
वैश्विक संपत्ति कर (3%)
शिक्षा और स्वास्थ्य में सार्वजनिक निवेश
संरचनात्मक असमानताओं का समाधान
जलवायु न्याय तंत्र
UPSC सिलेबस से जुड़ाव
GS I: समाज, जाति, लिंग
GS II: शासन, कर नीति
GS III: अर्थव्यवस्था, असमानता, जलवायु
GS IV: नैतिकता और सामाजिक न्याय
निष्कर्ष
वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह स्पष्ट करती है कि असमानता केवल आंकड़ों की समस्या नहीं, बल्कि लोकतंत्र, सतत विकास और मानवीय गरिमा की मूल चुनौती है। भारत के लिए यह रिपोर्ट एक चेतावनी है कि आर्थिक वृद्धि के बावजूद संरचनात्मक असमानताएं बनी हुई हैं।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह रिपोर्ट:
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नीति-समाधानों की स्पष्ट रूपरेखा
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प्रकाशित: 12 दिसंबर 2025