प्रस्तावना
भारत और रूस के बीच Reciprocal Exchange of Logistic Support (RELOS) समझौता रक्षा सहयोग में एक रणनीतिक मील का पत्थर है।
3 दिसंबर 2024 को रूस की संसद (दुमा) ने इस लंबे समय से लंबित सैन्य समझौते को आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी—राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 4–5 दिसंबर 2024 की भारत यात्रा से ठीक एक दिन पहले।
यह विकास भारत-रूस रणनीतिक संबंधों को मजबूत करता है और भारत की सैन्य क्षमता, विशेष रूप से आर्कटिक संचालन और हिंद महासागर उपस्थिति में नए आयाम जोड़ता है।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए, यह समझौता भारत की विदेश नीति, रक्षा साझेदारियों और एक बहुध्रुवीय विश्व में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
RELOS समझौता क्या है?
Reciprocal Exchange of Logistic Support (RELOS) एक द्विपक्षीय सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौता है, जो दोनों देशों को एक-दूसरे की सशस्त्र सेनाओं को लॉजिस्टिक समर्थन प्रदान करने की अनुमति देता है।
यह पारंपरिक रक्षा समझौतों (जैसे हथियार प्रणाली या तकनीकी साझेदारी) से अलग है—यह आधुनिक युद्ध की रीढ़ "लॉजिस्टिक्स" पर केंद्रित है।
RELOS की प्रमुख विशेषताएँ
आपसी सुविधाओं का उपयोग: दोनों देशों के सैन्य विमान, युद्धपोत और सैन्य कर्मी एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों और अवसंरचना का उपयोग कर सकेंगे।
लॉजिस्टिक सहायता सेवाएँ: ईंधन, तेल, स्पेयर पार्ट्स, मेंटनेंस सपोर्ट, बर्थिंग राइट्स, एयर बेस एक्सेस।
संचालन का दायरा: संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण कार्यक्रम, मानवीय अभियान, आपदा राहत संचालन।
नियामक ढाँचा: लॉजिस्टिक्स सेवाओं को मानकीकृत करता है और पूर्व में की गई अनौपचारिक व्यवस्थाओं को औपचारिक रूप देता है।
तैनाती सीमा: अधिकतम 5 युद्धपोत, 10 विमान और 3,000 सैन्य कर्मी एक समय में 5 वर्ष की अवधि के लिए तैनात किए जा सकते हैं (5 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है)।
आकाश और बंदरगाह तक पहुँच: एक-दूसरे के हवाई क्षेत्र और पोर्ट सुविधाओं का उपयोग, जिसमें युद्धपोतों की यात्रा भी शामिल है।
समझौते की समयरेखा
| घटना | तिथि |
|---|---|
| ड्राफ्ट समझौते को मंजूरी | जून 2024 |
| मॉस्को में औपचारिक हस्ताक्षर | 18 फरवरी 2025 |
| रूसी संसद द्वारा अनुमोदन | 3 दिसंबर 2024 |
| पुतिन की भारत यात्रा | 4–5 दिसंबर 2024 |
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
1. आर्कटिक क्षेत्र तक पहुँच और संचालन क्षमता
भारत को सबसे बड़ा लाभ मिलता है—रूस के आर्कटिक नौसैनिक बंदरगाहों तक पहुँच, विशेषकर Northern Sea Route (व्लादिवोस्तोक से मुरमान्स्क तक)।
यह भारतीय नौसेना के लिए परिवर्तनकारी है क्योंकि:
भारत की आर्कटिक जलक्षेत्र में कोई स्थायी उपस्थिति नहीं है।
रूसी बंदरगाह लंबी दूरी पर रिफ्यूलिंग और मेंटनेंस हब प्रदान करते हैं।
भारतीय युद्धपोत अब आर्कटिक में लगातार लॉजिस्टिक समर्थन के साथ संचालन कर पाएंगे।
नौसेना की पहुँच हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक से आगे बढ़कर ध्रुवीय जलक्षेत्रों तक फैल जाएगी।
IDSA के अनुसार, यह समझौता भारतीय नौसेना को "पोलर वाटर्स में अनुभव" प्रदान करेगा—जो जलवायु परिवर्तन और पिघलती बर्फ की वजह से बदलती आर्कटिक भू-राजनीति के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2. वैज्ञानिक और आर्कटिक महत्वाकांक्षाएँ
भारत की वैज्ञानिक गतिविधियों को भी लाभ:
भारत का आर्कटिक अनुसंधान स्टेशन (सवालबार्ड, स्पिट्सबर्गेन) पहले से सक्रिय है।
RELOS भारतीय वैज्ञानिकों के लिए लॉजिस्टिक सहायता सुनिश्चित करता है।
रूस के आर्कटिक बंदरगाह वैज्ञानिक मिशनों के संचालन को मजबूत बनाते हैं।
यह भारत की जलवायु और पर्यावरण अध्ययन क्षमता को बढ़ाता है।
3. सैन्य उपकरण व मेंटनेंस निरंतरता
भारत की बड़ी सैन्य संपत्तियाँ रूस से आती हैं:
Su-30MKI, Su-57
T-90 टैंक
S-400 एयर डिफेंस
पनडुब्बी तकनीक
RELOS से स्पेयर पार्ट्स, मेंटनेंस और तकनीकी समर्थन तक तेज और भरोसेमंद पहुँच सुनिश्चित होती है।
4. लंबी दूरी के नौसैनिक अभियान
भारतीय नौसेना इंडो-पैसिफिक में 12–15 युद्धपोत तैनात रखती है।
RELOS से:
लॉजिस्टिक सपोर्ट शिप की आवश्यकता कम हो जाती है।
युद्धपोत मित्र बंदरगाहों पर ईंधन, पानी, मेंटनेंस प्राप्त कर सकते हैं।
संचालन दक्षता बढ़ती है।
रूस के लिए रणनीतिक लाभ
1. हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) तक पहुँच
रूस को:
एशिया-प्रशांत में सैन्य उपस्थिति बनाए रखने का मौका
चीनी प्रभाव को संतुलित करने की क्षमता
भारतीय बंदरगाहों पर ईंधन/मेंटेनेंस सुविधाएँ
2. पश्चिमी प्रतिबंधों का समाधान
यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों की स्थिति में RELOS:
रूस को वैकल्पिक लॉजिस्टिक नेटवर्क प्रदान करता है
वैश्विक उपस्थिति बनाए रखने में सहायक होता है
3. लागत-प्रभावी सैन्य पहुँच
बिना स्थायी सैन्य अड्डे बनाए रूस:
अस्थायी रूप से एसेट्स तैनात कर सकता है
भारतीय सुविधाओं का उपयोग कर खर्च कम कर सकता है
RELOS अन्य समझौतों से कैसे अलग है?
भारत ने अनेक देशों के साथ समान लॉजिस्टिक समझौते किए हैं:
| देश | समझौता | वर्ष |
|---|---|---|
| अमेरिका | LEMOA | 2016 |
| यूके | RELOS-समान | 2016 के बाद |
| फ्रांस | लॉजिस्टिक समझौता | 2016 के बाद |
| जापान | ACSA | 2016 के बाद |
| ऑस्ट्रेलिया | लॉजिस्टिक समझौता | 2016 के बाद |
| सिंगापुर | लॉजिस्टिक समझौता | 2016 के बाद |
| वियतनाम | लॉजिस्टिक समझौता | 2016 के बाद |
| दक्षिण कोरिया | लॉजिस्टिक समझौता | 2016 के बाद |
| रूस | RELOS | 2024–25 |
LEMOA (US-India) ने भारत के लिए ऐसी व्यवस्था का मार्ग खोला था।
RELOS उसी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है।
भारत–रूस संबंधों में RELOS का महत्व
2024 में भारत–रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे हुए।
2010 में संबंधों को "Special and Privileged Strategic Partnership" का दर्जा मिला।
2022 के बाद पुतिन की यह पहली भारत यात्रा है।
यात्रा से ठीक पहले समझौते की मंजूरी दोनों देशों की प्रतिबद्धता दिखाती है।
विशेषज्ञ गिरीश लिंगन्ना लिखते हैं:
"यदि सही से लागू किया जाए, तो RELOS भारत को एक वास्तविक वैश्विक नौसैनिक शक्ति बनाने की लॉजिस्टिक रीढ़ दे सकता है।"
ऑपरेशनल दक्षता
ORF के अनुसार, RELOS के लाभ:
सैन्य संचालन में समय की बचत
नौकरशाही देरी समाप्त
रिफ्यूलिंग/बर्थिंग/एविएशन सपोर्ट की प्रक्रियाएँ तेज
लागत का रोलिंग सेटलमेंट
दिसंबर 2024 में टाइमिंग का महत्व
पुतिन की भारत यात्रा
25 वर्ष की साझेदारी
पश्चिमी दबावों के बीच भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का संकेत
आर्कटिक में बढ़ती भू-राजनीति
इंडो-पैसिफिक में तनाव बढ़ना
भारत की स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी
भारत किसी पक्ष का चयन नहीं करता—प्रगmatic multi-alignment अपनाता है।
वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण दोनों के साथ संबंध बनाए रखता है।
आर्कटिक संचालन व सैन्य प्लेटफ़ॉर्म
लाभ पाने वाले प्रमुख प्लेटफ़ॉर्म:
INS विक्रमादित्य
तलगवार-वर्ग फ्रिगेट
स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ
आर्कटिक शोध हेतु सर्वे जहाज
ऊर्जा सुरक्षा
भारत Yamal (रूस) से LNG आयात करता है।
RELOS सुनिश्चित करेगा कि भारतीय नौसेना:
ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला की रक्षा कर सके
आर्कटिक मार्गों पर प्रभावी संचालन कर सके
भारत–चीन संबंधों पर प्रभाव
भारत की वैश्विक नौसैनिक उपस्थिति चीन को संतुलित करती है
आर्कटिक में भारत की भूमिका चीन की Arctic ambitions को चुनौती दे सकती है
हिंद महासागर में रूसी समर्थन क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित करेगा
UPSC अभ्यर्थियों के लिए संबंधित टॉपिक्स
India’s Arctic Policy
Indo-Pacific Strategy
Russia–Ukraine युद्ध का प्रभाव
India–US रक्षा संबंध
Climate Change & Arctic Geopolitics
Northern Sea Route
Multi-alignment Foreign Policy
UPSC के लिए महत्व
अंतरराष्ट्रीय संबंध
रक्षा और सुरक्षा
भू-राजनीति
अवसंरचना और कनेक्टिविटी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संभावित UPSC प्रश्न
RELOS का आर्कटिक महत्व
लॉजिस्टिक समझौतों की भूमिका
भारत-चीन आर्कटिक प्रतिस्पर्धा
स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी के संदर्भ में RELOS
ऊर्जा सुरक्षा और आर्कटिक
मुख्य निष्कर्ष
रणनीतिक स्वायत्तता भारत की प्राथमिकता है
आधुनिक सैन्य शक्ति = लॉजिस्टिक्स + सप्लाई चेन
आर्कटिक 21वीं सदी का नया भू-राजनीतिक युद्धक्षेत्र है
RELOS छह वर्षों की बातचीत का परिणाम है
बहुपक्षीय साझेदारियाँ भारत के हित में हैं
UPSC तैयारी के लिए अध्ययन रणनीति
India’s Arctic Policy पढ़ें
IDSA, ORF जैसे थिंक टैंक फॉलो करें
LEMOA और RELOS का तुलनात्मक विश्लेषण करें
इसे भारत की Maritime Doctrine और China Strategy से जोड़ें
निष्कर्ष
भारत–रूस RELOS समझौता भारत की सामरिक स्थिति में एक ऐतिहासिक बदलाव है।
आर्कटिक में पहुँच, वैज्ञानिक सहयोग, और वैश्विक नौसैनिक उपस्थिति से भारत की शक्ति-प्रक्षेपण क्षमता बढ़ती है।
रूस को एशियाई भू-राजनीति में पुनर्स्थापना मिलती है।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध रक्षा, लॉजिस्टिक्स, जलवायु परिवर्तन और रणनीतिक स्वायत्तता का मिश्रण हैं।