Popular Content

featured project

आर्कटिक काउंसिल: आर्कटिक क्षेत्र में सहयोग का मंच

परिचय: आर्कटिक काउंसिल क्यों है चर्चा में?

हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम (3-4 मई 2025) में भारत की आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी पर विशेष ध्यान दिया गया। दुनिया भर के विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया और बदलते मौसम, वैज्ञानिक शोध तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की। इस कार्यक्रम ने भारत की महत्वाकांक्षाओं और सहयोगी प्रयासों को उजागर किया, जिससे आर्कटिक काउंसिल वर्तमान करेंट अफेयर्स (current affairs, current date) में एक महत्वपूर्ण विषय बन गई है।

आर्कटिक काउंसिल क्या है?

आर्कटिक काउंसिल, 1996 में ओटावा घोषणा के तहत स्थापित, आर्कटिक राज्यों, स्वदेशी लोगों और अन्य निवासियों के बीच सहयोग, समन्वय और संवाद को बढ़ावा देने वाला प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है। इसका मुख्य फोकस आर्कटिक क्षेत्र में सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर है।

सदस्य देश

आठ देश हैं जो आर्कटिक सर्कल की भूमि पर अधिकार रखते हैं:

कनाडा

डेनमार्क (ग्रीनलैंड और फरो आइलैंड्स सहित)

फिनलैंड

आइसलैंड

नॉर्वे

रूस

स्वीडन

अमेरिका

आर्कटिक क्षेत्र के स्वदेशी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले छह संगठन भी काउंसिल के स्थायी प्रतिभागी (Permanent Participants) हैं।

ऑब्जर्वर स्थिति

जो देश आर्कटिक क्षेत्र के नहीं हैं, वे ऑब्जर्वर (Observer) बन सकते हैं। ऑब्जर्वर देशों को वोटिंग का अधिकार नहीं होता, लेकिन वे चर्चाओं और परियोजनाओं में भाग ले सकते हैं। भारत को 2013 में ऑब्जर्वर का दर्जा मिला और तब से वह आर्कटिक अनुसंधान और नीति चर्चाओं में सक्रिय है।

आर्कटिक काउंसिल में भारत की भागीदारी

भारत की ऑब्जर्वर भूमिका

भारत 2013 से आर्कटिक काउंसिल में ऑब्जर्वर है, और चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जैसे अन्य एशियाई देशों के साथ शामिल है।

भारत काउंसिल की बैठकों, वैज्ञानिक अनुसंधान और वर्किंग ग्रुप्स में भाग लेता है, जिसमें जलवायु अध्ययन, समुद्री जैव विविधता और हिमनद अनुसंधान शामिल हैं।

वैज्ञानिक योगदान

भारत ने 2008 में नॉर्वे के स्वालबार्ड में अपना पहला स्थायी आर्कटिक अनुसंधान स्टेशन 'हिमाद्रि' स्थापित किया। नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) द्वारा संचालित, हिमाद्रि में जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक बर्फ पिघलाव और भारतीय मानसून पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।

भारतीय वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय टीमों के साथ मिलकर, विशेष रूप से स्वालबार्ड में, जलवायु और पर्यावरण विज्ञान पर सक्रिय अनुसंधान कर रहे हैं।

रणनीतिक और आर्थिक महत्व

आर्कटिक क्षेत्र में तेल, गैस और दुर्लभ खनिजों का विशाल भंडार है, जो ग्लोबल वार्मिंग के चलते बर्फ पिघलने के कारण अब अधिक सुलभ हो रहे हैं।

नॉर्दर्न सी रूट (Northern Sea Route) के खुलने से भारत को यूरोप और एशिया के बीच व्यापार के लिए छोटा और सस्ता समुद्री मार्ग मिलेगा, जिससे समुद्री व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।

भारत की 2022 की आर्कटिक नीति सतत विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान और साझेदारी निर्माण पर जोर देती है।

मुख्य बिंदु: डेली जीके अपडेट

आर्कटिक काउंसिल आर्कटिक सहयोग के लिए मुख्य अंतरराष्ट्रीय मंच है, जिसमें 8 सदस्य देश और कई स्थायी प्रतिभागी हैं।

भारत 2013 से ऑब्जर्वर है और नॉर्वे के स्वालबार्ड में 'हिमाद्रि' अनुसंधान स्टेशन संचालित करता है।

आर्कटिक के संसाधन और नए समुद्री मार्ग भारत की ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

आर्कटिक में भारत की भागीदारी वैज्ञानिक प्रगति, सतत विकास और वैश्विक सहयोग के उसके व्यापक लक्ष्यों के अनुरूप है।

2025 में नई दिल्ली में आयोजित आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम ने क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित किया।

परीक्षाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

आर्कटिक काउंसिल और भारत की आर्कटिक भागीदारी UPSC, SSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अंतरराष्ट्रीय संबंध, पर्यावरण और भूगोल के तहत अक्सर पूछी जाती है। भारत की ऑब्जर्वर स्थिति, आर्कटिक के संसाधनों व मार्गों का महत्व, और वैज्ञानिक योगदान समझना डेली जीके अपडेट और प्रतियोगी परीक्षा न्यूज़ की तैयारी के लिए जरूरी है। Atharva Examwise के साथ जुड़े रहें और नवीनतम करेंट अफेयर्स (current date) पाते रहें।