प्राचीन भारत की पांडुलिपि धरोहर: सरस्वती महल पुस्तकालय फिर चर्चा में
सरस्वती महल पुस्तकालय, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित, भारत के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित ज्ञान भंडारों में से एक है। 16वीं शताब्दी में नायक वंश के शासनकाल में स्थापित और बाद में मराठा शासकों द्वारा समृद्ध किया गया यह पुस्तकालय, भारत की बौद्धिक विरासत का अनूठा उदाहरण है और UPSC सहित सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन बिंदु है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और शाही संरक्षण
मूल रूप से "सरस्वती भंडार" के रूप में रघुनाथ नायक (1600-1634 ई.) के शासन में स्थापित, इस पुस्तकालय को महाराजा सरफोजी द्वितीय (1798-1832) के काल में विशेष पहचान मिली। मराठा राजा, जो स्वयं बहुभाषाविद और विद्वान थे, ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का अध्ययन केंद्र बना दिया। 1820 में वाराणसी यात्रा के दौरान उन्होंने अनेक पंडितों को नियुक्त कर देशभर से दुर्लभ पांडुलिपियों की प्रतिलिपियां मंगवाईं।
अद्वितीय संग्रह और वैश्विक मान्यता
यह पुस्तकालय अपने अद्वितीय संग्रह के लिए Encyclopedia Britannica में "भारत का सबसे उल्लेखनीय पुस्तकालय" के रूप में दर्ज है। मुख्य विशेषताएं:
49,000 से अधिक पांडुलिपियां – संस्कृत, तमिल, तेलुगु, मराठी, फारसी व अन्य भाषाओं में
39,000 संस्कृत पांडुलिपियां – सबसे बड़ा संग्रह
5,968 तमिल पांडुलिपियां – चिकित्सा, साहित्य, संगीत आदि विषयों पर
3,000 मराठी पांडुलिपियां – 17वीं-18वीं सदी की
60,000 मुद्रित पुस्तकें – भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में
अनूठी धरोहरें और शोध महत्व
यहां एक ऐसी पांडुलिपि भी है, जिसे बाएं से दाएं पढ़ने पर रामायण और दाएं से बाएं पढ़ने पर कृष्ण कथा मिलती है। अन्य प्रमुख संग्रह:
आयुर्वेद व चिकित्सा पर दुर्लभ ग्रंथ, रोगियों के केस स्टडी सहित
ज्योतिष व खगोलशास्त्र पर प्राचीन ग्रंथ
ऐतिहासिक मानचित्र व एटलस
थंजावुर चित्रकला व अन्य कलाकृतियां
विज्ञान विषयक ग्रंथ – 400 वर्षों की साहित्यिक परंपरा
संरक्षण और डिजिटलीकरण
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (अब ज्ञान भारतम मिशन 2024-31) के तहत, पुस्तकालय में बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण कार्य हुए हैं। 2015 के बाद से, हजारों ताड़पत्र व भोजपत्र पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने 2014-15 में ₹7.50 लाख की राशि इस हेतु आवंटित की थी।
संरक्षण की पारंपरिक एवं आधुनिक विधियां
पुस्तकालय में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीके अपनाए जाते हैं:
लाल या पीले कपड़े में लपेटना (हल्दी के कीटाणुनाशक गुण)
हल्की धूप में रखना (सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश)
नीम, अदरक, लेमनग्रास तेल जैसे प्राकृतिक कीट-निवारक
लकड़ी के संदूकों में भंडारण (जलवायु नियंत्रण)
शोध व अकादमिक महत्व
1918 से यह पुस्तकालय तंजावुर जिला कलेक्टर के अधीन शोध केंद्र के रूप में कार्यरत है। यहां भारत व विदेश के विद्वान शोध के लिए आते हैं। प्रमुख विभाग:
पांडुलिपि संरक्षण
दुर्लभ ग्रंथों का प्रकाशन (5 भाषाओं में 552 पुस्तकें प्रकाशित)
मैन्युस्क्रिप्टोलॉजी प्रशिक्षण
माइक्रोफिल्मिंग व ज़ेरॉक्स सुविधा
समकालीन प्रासंगिकता और डिजिटल पहुंच
हालांकि प्रतिदिन केवल 10-15 पाठक ही आते हैं, लेकिन डिजिटलीकरण के कारण वैश्विक शोधार्थियों को लाभ मिल रहा है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत 3.5 लाख पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण हो चुका है।
परीक्षा की दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है
UPSC प्रीलिम्स के लिए
प्राचीन भारतीय इतिहास: पुस्तकालय, पांडुलिपि परंपरा, ज्ञान संरक्षण पर प्रश्न
कला एवं संस्कृति: तंजावुर की सांस्कृतिक विरासत, पुस्तकालय का महत्व
भूगोल: तमिलनाडु के सांस्कृतिक स्थल
UPSC मेन्स के लिए
GS पेपर I (इतिहास): मध्यकालीन भारत, मराठा प्रशासन, सांस्कृतिक समन्वय
GS पेपर I (संस्कृति): पारंपरिक ज्ञान प्रणाली, विरासत संरक्षण
निबंध विषय: ज्ञान संरक्षण, सांस्कृतिक धरोहर, डिजिटलीकरण
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुख्य तथ्य
कालक्रम: 16वीं सदी (नायक स्थापना) → 18वीं-19वीं सदी (मराठा संवर्द्धन) → 1918 (सार्वजनिक उपयोग)
शाही संरक्षण: पुस्तकालयों का ज्ञान केंद्र के रूप में महत्व
बहुभाषी धरोहर: 10+ भाषाओं में पांडुलिपियां
आधुनिक पहल: डिजिटलीकरण, ज्ञान भारतम मिशन
प्रमुख सरकारी पहल
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (2003) → ज्ञान भारतम मिशन (2024-31), ₹482.85 करोड़ का बजट
डिजिटल इंडिया – सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण
UNESCO Memory of World Programme – भारतीय पांडुलिपियों की वैश्विक मान्यता
स्टैटिक जीके तथ्य
स्थान: तंजावुर, तमिलनाडु (महल परिसर में)
अन्य नाम: तंजावुर महाराजा सरफोजी का सरस्वती महल पुस्तकालय
स्थापना: 16वीं सदी (नायक काल), संवर्द्धन – सरफोजी द्वितीय (1798-1832)
वैश्विक मान्यता: Encyclopedia Britannica द्वारा "भारत का सबसे उल्लेखनीय पुस्तकालय"
सरस्वती महल पुस्तकालय, भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक तकनीकी संरक्षण का अद्भुत संगम है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यह केवल तथ्य याद करने का विषय नहीं, बल्कि यह समझने का भी है कि किस प्रकार पारंपरिक ज्ञान प्रणाली आज की सांस्कृतिक नीति और विरासत संरक्षण में योगदान कर रही हैं। भारत के डिजिटल परिवर्तन में ऐसे पुस्तकालय अतीत और भविष्य को जोड़ने वाले सेतु हैं – और यही इसे सिविल सेवा अभ्यर्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।
“परीक्षा की दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है”
सरस्वती महल पुस्तकालय, भारतीय इतिहास, संस्कृति, ज्ञान संरक्षण और डिजिटलीकरण जैसे विषयों से सीधे जुड़ा है। UPSC व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे जुड़े तथ्य, सरकारी पहल, सांस्कृतिक महत्व और संरक्षण प्रयासों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह विषय न केवल सामान्य अध्ययन के लिए, बल्कि निबंध, इंटरव्यू और वैकल्पिक विषयों में भी आपकी तैयारी को मजबूत करेगा।