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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की शक्तियों पर अंकुश लगाते हुए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की। ‘Current Affairs March 2025’ में यह कवरेज पढ़ें, जो UPSC, SSC और बैंकिंग अभ्यर्थियों के लिए उपयोगी है।

परिचय – क्यों यह फैसला “Daily GK Update” में महत्वपूर्ण है

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा रोके गए 10 विधेयकों को फिर से वैध ठहराया। अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए, न्यायालय ने माना कि जिन तारीखों पर ये विधेयक दोबारा राज्यपाल को भेजे गए थे, वे तभी से पारित माने जाएँगे। यह फैसला राज्यपाल की संवैधानिक सीमाओं को स्पष्ट करने में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, ख़ासकर उन राज्यों के लिए जहाँ राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी चल रही है।

यह निर्णय उन विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से अहम है जो UPSC, SSC, Banking और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और “Atharva Examwise current news” या “competitive exam news” पर बारीकी से नज़र रखते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख निष्कर्ष – राज्यपाल के पास नहीं है ‘Absolute Veto Power’

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास ‘absolute veto’ या ‘pocket veto’ नहीं है।

यदि विधानसभा किसी विधेयक को पुनर्विचार के बाद फिर से भेजती है, तो राज्यपाल को एक माह के भीतर उसे स्वीकृति देनी होगी, बशर्ते विधेयक में कोई बड़ा संशोधन न जोड़ा गया हो।

न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा प्रकट की गई “जनता की इच्छा” का सम्मान करना चाहिए और किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।

निर्धारित समय-सीमा

राष्ट्रपति को विधेयक भेजना: यदि राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना चाहते हैं, तो यह अधिकतम एक माह में किया जाना चाहिए।

स्वीकृति न देने पर: अगर राज्यपाल विधेयक पर सहमति नहीं देते, तो उन्हें विधेयक को तीन माह के भीतर वापस विधानसभा भेजना होगा।

पुनः भेजे गए विधेयक पर: यदि विधानसभा विधेयक को दोबारा पारित करके भेजती है, तो राज्यपाल को इसे एक माह के भीतर स्वीकृति देनी होगी, जब तक उसमें कोई नया संशोधन न हो।

कोर्ट के दिशा-निर्देश – राज्यपाल की भूमिका पर स्पष्टता

संविधान में असीमित शक्तियों का प्रावधान नहीं

न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख हैं, न कि किसी राजनीतिक दल के प्रतिनिधि।

कोर्ट के मुताबिक, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति सीमित है और उन्हें मंत्रीपरिषद की सलाह पर काम करना होता है।

चुनी हुई विधानसभा की इच्छा के विरुद्ध जाना राज्यपाल की शपथ का उल्लंघन होगा।

डॉ. आंबेडकर का उद्धरण

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि यदि संविधान अच्छा हो, पर इसे लागू करने वाले अच्छे न हों, तो इसके परिणाम बुरे हो सकते हैं।

यह उन लोगों की नैतिक ज़िम्मेदारी को रेखांकित करता है, जिन्हें संविधान के पालन का दायित्व सौंपा गया है।

व्यापक प्रभाव – “Atharva Examwise Current News” पर रखें नज़र

जहाँ-जहाँ राज्यपाल बनाम सरकार टकराव

केरल: राज्यपाल ने सात विधेयकों को रोककर राष्ट्रपति के पास भेज दिया; केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।

पंजाब: राज्यपाल द्वारा सात विधेयकों को रोके जाने पर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची; कोर्ट ने राज्यपाल को “आग से खेलने” की चेतावनी दी थी।

तमिलनाडु: 2023 में राज्यपाल ने राज्य सरकार का अभिभाषण पढ़ने से इनकार कर दिया था।

तेलंगाना: यहाँ राज्यपाल ने एमएलसी नामांकन और बजट को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया, जिसके चलते मामला कोर्ट पहुँचा।

पश्चिम बंगाल: राज्यपाल के पास 23 विधेयक लंबित हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का हवाला देते हुए उन्हें मंज़ूरी देने का अनुरोध किया।

बुलेट पॉइंट्स – “Competitive Exam News” के लिए मुख्य तथ्य

सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते

संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधेयकों पर शीघ्र फैसला लेना अनिवार्य है।

यदि विधानसभा विधेयक को पुनर्विचार के बाद दोबारा भेजती है, तो राज्यपाल को एक माह के भीतर मंज़ूरी देनी होगी।

राज्यपाल की कार्रवाई को “अवैध और मनमानी” बताया गया, जो संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

“जनता की इच्छा” के विपरीत कार्य करना राज्यपाल की शपथ का उल्लंघन माना जाएगा।

सारांश / परीक्षाओं के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है

संवैधानिक जानकारी: UPSC, SSC और Banking जैसी परीक्षाओं में राज्यपाल और राज्य विधानसभा से जुड़े प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। यह फैसला बताता है कि राज्यपाल के अधिकार एवं सीमाएँ संविधान में कैसे परिभाषित हैं।

न्यायिक समीक्षा का महत्व: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल का निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है, जो ‘चेक एंड बैलेंस’ की अवधारणा पर आधारित सवालों के लिए अहम है।

जनता की इच्छा का सम्मान: यह निर्णय रेखांकित करता है कि एक अप्रत्यक्ष रूप से नियुक्त राज्यपाल, प्रत्यक्ष रूप से चुनी गई विधानसभा की इच्छा को बाधित नहीं कर सकता।

करंट अफेयर्स में प्रासंगिकता: यह हाल ही की, उच्च-प्रोफ़ाइल घटना है और निश्चित रूप से “current affairs March 2025” या “daily GK update” के तहत परीक्षाओं में आ सकती है।

अंत में, यह फैसला न सिर्फ तमिलनाडु के लिए बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी राज्यपाल और सरकार के बीच संतुलन स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करता है। परीक्षार्थी Atharva Examwise पर नज़र रखें ताकि आने वाले अपडेट्स से जुड़े सवालों की तैयारी बेहतर हो सके।