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भारत-अमेरिका संबंधों का लेन-देनात्मक मोड़: भारत को अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए

परिचय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया वाशिंगटन यात्रा ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा। यह यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पद ग्रहण करने के कुछ ही सप्ताह बाद हुई और इसमें व्यापार, रक्षा और रणनीतिक सहयोग जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया। हालांकि, चर्चा के लेन-देनात्मक स्वरूप से संकेत मिलता है कि भारत को अपने हितों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए और उन नीतियों का विरोध करना चाहिए जो उसके आर्थिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हैं।

मोदी की अमेरिका यात्रा के प्रमुख घटनाक्रम

1. आर्थिक और व्यापारिक सहयोग

‘मिशन 500’ की शुरुआत, जिसका लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को $500 बिलियन तक बढ़ाना है।

मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर चर्चा, जिसका पहला चरण इस वर्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

भारत द्वारा अमेरिकी ऊर्जा, तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद में वृद्धि, जिससे $45.7 बिलियन के व्यापार घाटे को संतुलित करने में मदद मिलेगी।

2. रणनीतिक और रक्षा साझेदारी

COMPACT (Catalyzing Opportunities for Military Partnership, Accelerated Commerce & Technology for the 21st Century) की स्थापना, जो सैन्य और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को सुगम बनाएगी

CET (Critical and Emerging Technologies) को TRUST (Transforming the Relationship Utilizing Strategic Technology) के रूप में पुनः ब्रांडिंग, जिसमें ध्यान केंद्रित किया गया:

सेमीकंडक्टर्स

क्वांटम कंप्यूटिंग

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अवसंरचना रोडमैप

26/11 मुंबई हमलों में शामिल ताहव्वर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी, जिससे भारत में मुकदमा चलाया जा सके।

3. इंडो-पैसिफिक और क्वाड सहयोग में निरंतरता

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग को और मजबूत किया गया

आगामी क्वाड शिखर सम्मेलन दिल्ली में, जिससे भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच रणनीतिक गठबंधन को मजबूती मिलेगी।

भारत-अमेरिका संबंधों की चुनौतियाँ

हालांकि यात्रा ने सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

व्यापार बाधाएँ और प्रतिकूल शुल्क

अमेरिकी शुल्क और भारतीय निर्यात पर प्रतिकूल कर में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई।

नई अमेरिकी व्यापार नीतियाँ भारतीय व्यापारिक हितों के लिए आर्थिक चुनौतियाँ पेश कर सकती हैं।

निर्वासन और प्रवासन संबंधी मुद्दे

अमेरिका द्वारा अवैध प्रवासियों को सैन्य उड़ानों के माध्यम से निर्वासित करने की नीति चिंता का विषय बनी हुई है।

भारतीय प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए राजनयिक प्रयासों की आवश्यकता है

अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा आयात पर अत्यधिक निर्भरता

जबकि ऊर्जा खरीद से व्यापार घाटे में कमी होगी, यह अमेरिका पर भारत की निर्भरता को बढ़ा सकता है

स्वदेशी रक्षा उत्पादन और ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण की दिशा में भारत को ध्यान देना चाहिए।

भारत के लिए रणनीतिक कदम

भारत-अमेरिका संबंधों को संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी बनाए रखने के लिए भारत को रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए:

मजबूत व्यापार वार्ता

अनुकूल व्यापार समझौतों की दिशा में जोर देना और अनुचित शुल्कों का विरोध करना।

घरेलू उद्योगों को मजबूत कर आयात पर निर्भरता कम करना

स्वदेशी रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र को सशक्त बनाना

घरेलू सेमीकंडक्टर और AI अवसंरचना में निवेश

मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देना, जिससे अमेरिका पर रक्षा आयात निर्भरता कम हो।

प्रवासन नीतियों पर राजनयिक प्रयास

भारतीय श्रमिकों और छात्रों की सुरक्षा के लिए मानवीय नीतियों की वकालत करना

प्रभावित भारतीय नागरिकों के लिए सशक्त कांसुलर सहायता सुनिश्चित करना

वैश्विक भागीदारी का रणनीतिक विविधीकरण

अन्य वैश्विक शक्तियों (EU, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ आर्थिक और रक्षा सहयोग का विस्तार

BRICS और ASEAN जैसे क्षेत्रीय गठबंधनों का लाभ उठाना

निष्कर्ष

हालांकि भारत-अमेरिका संबंधों में सकारात्मक प्रगति हुई है, लेकिन इनकी लेन-देनात्मक प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक मूल्यांकन और रणनीतिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। भारत को अपनी दीर्घकालिक आर्थिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्राथमिकता देनी होगी, जिससे द्विपक्षीय सहयोग आपसी हितों पर आधारित और संतुलित बना रहे

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By : team atharvaexamwise