ब्नेई मेनाशे को समझना: भारत की ‘लॉस्ट ट्राइब’
हाल के समय के सबसे रोचक भू-राजनीतिक विकासों में से एक में, इज़राइली सरकार ने 23 नवंबर 2025 को आधिकारिक तौर पर एक योजना को मंजूरी दी, जिसके तहत मणिपुर और मिज़ोरम राज्यों के लगभग 5,800 ब्नेई मेनाशे समुदाय के लोगों को 2030 तक पुनर्वासित किया जाएगा। यह निर्णय दशकों से चल रहे एक ऐतिहासिक प्रयास का परिणाम है—एक ऐसे समुदाय को घर वापस लाना जिसने सदियों तक इन्डो-बर्मा क्षेत्र में अपनी यहूदी पहचान को संरक्षित रखा है।
ब्नेई मेनाशे (हिब्रू: בני מנשה, अर्थ: “मनश्शे के बच्चे”) मुख्य रूप से मिज़ो, कुकी और चिन जनजातीय समुदायों से बना एक समूह है, जो दावा करता है कि वे बाइबिल में वर्णित मनश्शे की जनजाति—दस ‘लॉस्ट ट्राइब्स’ में से एक—के वंशज हैं, जिन्हें लगभग 2,700 वर्ष पहले (722 ईसा पूर्व) असुर साम्राज्य ने निर्वासित किया था। उनकी मौखिक परंपरा एक असाधारण प्रवास यात्रा का वर्णन करती है: प्राचीन इज़राइल से निष्कासन के बाद, वे ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, तिब्बत और चीन होते हुए अंततः उत्तर-पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बस गए।
समुदाय की मुख्य विशेषताएँ
भारत में जनसंख्या: लगभग 5,800–6,000 सदस्य
मुख्य निवास क्षेत्र: मणिपुर और मिज़ोरम
जातीय संरचना: मुख्य रूप से मिज़ो, कुकी और चिन जनजातियाँ
धार्मिक अभ्यास: सदियों तक मौखिक परंपराओं के माध्यम से यहूदी अनुष्ठानों को सुरक्षित रखा
वर्तमान स्थिति: लगभग 2,500 पहले से इज़राइल में बस चुके; पिछले दो दशकों में 4,000+ लोग आव्रजित हुए
इज़राइल की ‘लॉस्ट ट्राइब्स’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्नेई मेनाशे के दावे को समझने के लिए बाइबिल में वर्णित दस खोई हुई जनजातियों के इतिहास को समझना आवश्यक है।
जब लगभग 720 ईसा पूर्व में असुर साम्राज्य ने इज़राइल के उत्तरी राज्य पर अधिकार किया, तो उन्होंने इस्राएल की दस जनजातियों — रूबेन, शिमोन, दान, नप्ताली, गाद, आशेर, इस्साकार, ज़बुलुन, मनश्शे और इफ्रैम — को निर्वासित कर दिया। दक्षिणी राज्य यहूदा 587 ईसा पूर्व तक बाबुल आक्रमण तक बना रहा।
हजारों वर्षों से दुनिया भर के अनेक समुदाय इन ‘लॉस्ट ट्राइब्स’ में अपनी वंशावली का दावा करते रहे हैं। ब्नेई मेनाशे के दावे को विश्वसनीयता तब मिली जब 2005 में इज़राइल के मुख्य रब्बी श्लोमो अमर ने उन्हें मनश्शे के वंशजों के रूप में आधिकारिक मान्यता दी, जिससे उनके लिए कानून-ए-वापसी (Law of Return, 1950) और अलीyah कार्यक्रम के तहत आव्रजन का रास्ता खुल गया।
इज़राइल का 2025 मंत्रिमंडलीय निर्णय: क्या बदला?
नवंबर 2025 का यह निर्णय ब्नेई मेनाशे आव्रजन को तेज करने वाला एक ऐतिहासिक कदम है।
मंजूर विवरण (सारणी)
| पैरामीटर | विवरण |
|---|---|
| कुल संख्या | भारत के 5,800 व्यक्ति |
| समयसीमा | 2030 तक चरणबद्ध |
| पहला चरण | 2026 के अंत तक 1,200 लोग |
| बजट | ₹27 मिलियन (लगभग 90 मिलियन इज़राइली शेकेल) |
| मुख्य पुनर्वास क्षेत्र | नॉफ़ हागलील (ऊपरी नाज़रेथ) और उत्तरी गलील के कस्बे |
| सरकारी सहायता | उड़ान, हिब्रू भाषा प्रशिक्षण, आवास, रूपांतरण कार्यक्रम, रोजगार सहायता |
| संलग्न मंत्रालय | अलीyah मंत्रालय, चीफ़ रब्बीनेट, जनसंख्या और आव्रजन प्राधिकरण |
यह निर्णय प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और आव्रजन मंत्री ओफ़िर सोफ़र द्वारा आगे बढ़ाया गया, जिन्होंने इसे धार्मिक वापसी और राष्ट्रीय रणनीति दोनों के रूप में प्रस्तुत किया।
इज़राइल अभी ब्नेई मेनाशे को क्यों ला रहा है?
1. धार्मिक वापसी और ज़ायनवादी विचारधारा
अलीyah नीति का मूल सिद्धांत यह है कि दुनिया भर के यहूदी ‘ज़ायन वापसी’ कर सकते हैं।
PM नेतन्याहू ने इसे “महत्वपूर्ण और ज़ायनवादी निर्णय” कहा।
2. उत्तरी इज़राइल की सुरक्षा मज़बूत करना
गलील क्षेत्र:
लेबनान की सीमा से लगा
हाल के वर्षों में हिज़्बुल्लाह हमलों से प्रभावित
2018–2023 के बीच कई कस्बों से 15% तक यहूदी आबादी पलायन
बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी
ब्नेई मेनाशे को यहाँ बसाने को “जुडाइज़िंग द गलीली” कहा जा रहा है, यानी यहूदी जनसांख्यिकीय उपस्थिति को मजबूत करना।
3. जनसांख्यिकीय संतुलन
निचला गलील अरब बहुल है—इज़राइल के लिए यह एक रणनीतिक चिंता है।
नए आव्रजकों से यहूदी जनसंख्या संतुलित रहेगी।
4. समावेशी आव्रजन नीति
इज़राइल दुनिया भर के दूरस्थ डायस्पोरा समुदायों को पहचानने की नीति पर काम करता है।
ब्नेई मेनाशे इसका एक अनोखा उदाहरण है।
अलीyah नीति: इस निर्णय का ढाँचा
अलीyah (हिब्रू: עלייה, अर्थ “ऊपर जाना”) इज़राइल की वह नीति है जिसके तहत दुनिया भर के यहूदियों को इज़राइल में वापस आने का अधिकार मिलता है।
कानून-ए-वापसी (1950) के तहत:
1948 से अब तक 3.2 मिलियन+ यहूदी इज़राइल आए
भाषा, आवास और रोजगार सहायता उपलब्ध
विभिन्न यहूदी समुदायों को मान्यता
ब्नेई मेनाशे इसका सबसे अनोखा उपयोग है क्योंकि उनका यहूदीपन मुख्य रूप से मौखिक परंपरा से संरक्षित रहा है।
भारत के उत्तर-पूर्व पर प्रभाव
जनसांख्यिकीय बदलाव
मिज़ोरम: शुरुआती 2026 में लगभग 300 लोग प्रस्थान करेंगे; 2,000+ पहले ही जा चुके
मणिपुर: 300–400 के पहले चरण
छोटे गाँवों में आबादी में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन संभव
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
हालाँकि अधिकांश सदस्य पहले ईसाई थे जिन्होंने यहूदी परंपराएँ अपनाईं, इसलिए कुल धार्मिक जनसांख्यिकी पर बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
सरकारी प्रतिक्रिया
MEA प्रवक्ता रंधीर जयसवाल ने कहा कि ऐसी “people-to-people movement” भारत-इज़राइल सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करती हैं।
रूपांतरण प्रक्रिया और एकीकरण कार्यक्रम
इज़राइल में पूर्ण एकीकरण से पहले औपचारिक ऑर्थोडॉक्स रूपांतरण आवश्यक है।
एकीकरण सहायता:
हिब्रू भाषा का उल्पन प्रशिक्षण
रूपांतरण कक्षाएँ (चीफ़ रब्बीनेट के तहत)
आवास सहायता
नौकरी मार्गदर्शन
सामाजिक एकीकरण
परिवार पुनर्मिलन
लगभग 3,000 सदस्यों के पहले से इज़राइल में रिश्तेदार हैं; इन्हें प्राथमिकता दी जाएगी।
तुलनात्मक संदर्भ: अन्य यहूदी डायस्पोरा
| समुदाय | आव्रजन संख्या |
|---|---|
| यमनाई यहूदी (1948–50) | ~50,000 |
| इराकी यहूदी (1951–52) | ~1,20,000 |
| मोरक्को यहूदी | ~2,50,000+ |
| सोवियत यहूदी | ~10 लाख |
| इथियोपियाई यहूदी | ~14,000+ |
ब्नेई मेनाशे विशेष इसलिए हैं क्योंकि यह पहला ‘लॉस्ट ट्राइब’ है जिसे सरकारी समर्थन मिला है।
नॉफ़ हागलील में बसावट: रणनीतिक भूगोल
नॉफ़ हागलील:
बाइबिलिक गलील क्षेत्र के पास
पहले से ब्नेई मेनाशे समुदाय मौजूद
लेबनान सीमा के निकट
मिश्रित यहूदी-अरब आबादी
केंद्रीय इज़राइल की तुलना में कम जीवन-यापन लागत
घटनाओं की समयरेखा
| वर्ष | घटना |
|---|---|
| 722 BCE | असुर साम्राज्य द्वारा दस जनजातियों का निर्वासन |
| 19वीं–20वीं सदी | ईसाई मिशनरियों द्वारा ‘लॉस्ट ट्राइब’ संबंध पहचान |
| 1950s | समुदाय ने औपचारिक यहूदी प्रथाओं को अपनाना शुरू किया |
| 2005 | मुख्य रब्बी द्वारा आधिकारिक मान्यता |
| 2003–2024 | 4,000+ आव्रजित |
| 23 नवंबर 2025 | कैबिनेट द्वारा 5,800 के पुनर्वास की मंजूरी |
| 2026 | पहला चरण |
| 2030 | पूर्ण लक्ष्य |
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भू-राजनीतिक प्रभाव
इज़राइल के लिए
जनसांख्यिकीय रणनीति
उत्तरी सुरक्षा
ज़ायनवादी विचारधारा
भारत के लिए
सांस्कृतिक संबंध मजबूत
राजनीतिक टिप्पणी से परहेज़ (व्यावहारिक कूटनीति)
शैक्षणिक और मीडिया विमर्श
धार्मिक पहचान
राष्ट्रवाद
डायस्पोरा राजनीति
सुरक्षा
UPSC तैयारी के लिए क्यों महत्वपूर्ण?
1. भू-राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध
भारत-इज़राइल संबंध
मध्य पूर्व सुरक्षा
धार्मिक कथाओं का आधुनिक राज्य नीति पर प्रभाव
2. GS Paper II (IR) थीम
संभावित प्रश्न:
“ब्नेई मेनाशे पुनर्वास के रणनीतिक प्रभावों पर चर्चा कीजिए।”
3. GS Paper I: जनसांख्यिकी
डायस्पोरा
जनसांख्यिकीय इंजीनियरिंग
4. इतिहास और धर्म अध्ययन
लॉस्ट ट्राइब्स की कथा
आधुनिक राजनीति में धार्मिक दावे
5. संस्कृति
भारत की धार्मिक विविधता
भारत-मध्य पूर्व सभ्यतागत संबंध
संभावित इंटरव्यू प्रश्न
धार्मिक पहचान के दावे राज्य नीति को कैसे प्रभावित करते हैं?
राष्ट्रों के बीच संबंधों में डायस्पोरा की भूमिका क्या है?
जनसांख्यिकीय पुनर्गठन के भू-राजनीतिक परिणाम?
उपयोगी तथ्य (स्मरण रखें)
5,800 सदस्य 2030 तक इज़राइल जाएंगे
मनश्शे जनजाति (लॉस्ट ट्राइब) के वंशज होने का दावा
2005 में आधिकारिक मान्यता
प्रमुख बसावट: नॉफ़ हागलील
₹27 मिलियन बजट
4,000+ पहले से आव्रजित
भारत ने cultural ties को सराहा
निष्कर्ष: हजारों वर्षों बाद घर वापसी
नवंबर 2025 का यह निर्णय धार्मिक दर्शन, सुरक्षा रणनीति और मानवीय संदर्भों का अद्वितीय संगम है।
जहाँ एक ओर समुदाय के लिए यह घर वापसी आध्यात्मिक महत्व रखती है, वहीं इज़राइल के लिए यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय और सुरक्षा रणनीति है।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए, यह विषय IR, भू-राजनीति, संस्कृति, जनसांख्यिकी और इतिहास—सभी मुख्य विषयों को जोड़ता है।