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बांग्लादेश और बंगाली राष्ट्रवाद: वर्तमान परिदृश्य और बदलाव

पृष्ठभूमि:

बांग्लादेश का जन्म "स्वतंत्र पूर्वी पाकिस्तान" के रूप में नहीं हुआ था। यह एक ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ था जो एक शुद्ध इस्लामिक राज्य के विचार से अलग था। इसका निर्माण विशेष रूप से एक बंगाली राष्ट्र के रूप में हुआ था।

हालिया घटनाक्रम:

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार द्वारा नियुक्त संविधान सुधार आयोग ने "धर्मनिरपेक्षता", "समाजवाद" और "राष्ट्रवाद" को बुनियादी सिद्धांतों से हटाने की सिफारिश की है। इनकी जगह "समानता", "मानवीय गरिमा", "सामाजिक न्याय" और "बहुलवाद" जैसे सिद्धांतों को शामिल करने का प्रस्ताव है।

प्रमुख मुद्दे:

  1. धर्मनिरपेक्षता का हटना:
    • यह पुष्टि करता है कि बांग्लादेश धार्मिक दृष्टि से इस्लामिक दिशा में बढ़ रहा है।
  2. राष्ट्रवाद का हटना:
    • यह बांग्लादेश की स्थापना के मूल विचारों के विरोधाभास में है।
    • बांग्ला राष्ट्रवाद, जो बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच प्रमुख भेद था, अब खतरे में है।
  3. समाजवाद का हटना:
    • यह बदलते वैश्विक आर्थिक प्रभावों और बांग्लादेश में पूंजीवाद के उदय को दर्शाता है।

बहुलवाद पर जोर:

आयोग ने संविधान में यह जोड़ने की सिफारिश की है कि "बांग्लादेश एक बहुलवादी, बहु-राष्ट्र, बहु-धर्म, बहु-भाषा और बहु-सांस्कृतिक देश है।" लेकिन यह विडंबना है कि बांग्लादेश एक मोनो-एथनिक (एक जातीय) देश है, जहां बंगाली बहुसंख्यक हैं।

राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण:

  • बड़े राजनीतिक दल अभी तक इस सिफारिश पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं।
  • बांग्लादेशी समाज में धर्म ने राष्ट्रवाद को पीछे छोड़ दिया है।
  • इस्लामवादियों के लिए यह बदलाव एक जीत के समान है, जबकि मध्यम वर्ग इसे नजरअंदाज करने का प्रयास कर सकता है।

मीडिया और बौद्धिक चुप्पी:

बांग्लादेशी मीडिया और बौद्धिक वर्ग इस मुद्दे पर चुप हैं। इसे इस्लामिक बहुलतावादी सोच के परिणामस्वरूप देखा जा सकता है।

निष्कर्ष:

यह बदलाव बांग्लादेश के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे में एक बड़े परिवर्तन को इंगित करता है। यह सिर्फ धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की समाप्ति नहीं है, बल्कि बांग्लादेश की राष्ट्रवादी पहचान पर भी सवाल खड़े करता है।

करंट अफेयर्स: बांग्लादेश में संवैधानिक बदलाव पर मुख्य बिंदु

  1. सिफारिशें:
    • "धर्मनिरपेक्षता", "समाजवाद" और "राष्ट्रवाद" को हटाना।
    • "समानता", "मानवीय गरिमा", "सामाजिक न्याय" और "बहुलवाद" को जोड़ना।
  2. प्रभाव:
    • बांग्लादेश की राष्ट्रवादी पहचान को चुनौती।
    • धर्म आधारित राजनीति का बढ़ता प्रभाव।
  3. बहुलवाद की विडंबना:
    • बांग्लादेश का मोनो-एथनिक चरित्र।
  4. राजनीतिक प्रतिक्रिया:
    • बड़े दलों की चुप्पी।
  5. आगामी प्रभाव:
    • इस्लामवादी शक्तियों का बढ़ना।
    • बांग्लादेश की स्थापना के मूल विचारों से दूरी।

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By : team atharvaexamwise