राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी: राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों पर कार्रवाई की समयसीमा पर बड़ा सवाल
मुख्य बिंदु
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले के बाद 14 महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्रवाई के लिए समयसीमा तय की गई थी।
राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है – यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को “किसी कानून या तथ्य के प्रश्न” पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने का अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट की ऐसी सलाह बाध्यकारी (binding) नहीं होती।
राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या संविधान में स्पष्ट प्रावधान न होने के बावजूद न्यायपालिका समयसीमा निर्धारित कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजे जाने की प्रक्रिया को अवैध बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल के फैसले में पहली बार राष्ट्रपति को विधेयकों पर निर्णय के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की थी।
राष्ट्रपति ने यह भी पूछा: क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को किसी भी प्रकार प्रतिस्थापित कर सकता है?
अनुच्छेद 143(1) क्या है?
राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे किसी भी सार्वजनिक महत्व के कानून या तथ्य के प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट से राय के लिए भेज सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की राय सलाहात्मक होती है, बाध्यकारी नहीं।
1950 से अब तक राष्ट्रपति ने कम-से-कम 15 बार यह अधिकार प्रयोग किया है।
सुप्रीम कोर्ट की सलाह बाध्यकारी क्यों नहीं होती?
अनुच्छेद 143(1) में ‘may’ शब्द का प्रयोग है, जिससे कोर्ट को उत्तर देने या न देने की स्वतंत्रता मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में दो बार राष्ट्रपति के संदर्भ का उत्तर देने से इनकार किया है (जैसे – अयोध्या विवाद, 1993; जम्मू-कश्मीर पुनर्वास कानून, 1982)।
कोर्ट की सलाह किसी भी कानूनी मिसाल (precedent) के रूप में बाध्यकारी नहीं होती।
क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को रेफरेंस से पलट सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के कावेरी जल विवाद में स्पष्ट किया था कि अनुच्छेद 143 का प्रयोग स्थापित न्यायिक निर्णय की समीक्षा या उलटने के लिए नहीं किया जा सकता।
सरकार चाहे तो पुनर्विचार याचिका या क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल कर सकती है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: राष्ट्रपति रेफरेंस के उदाहरण
कावेरी जल विवाद (1991): सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को असंवैधानिक करार दिया।
अयोध्या विवाद (1993): सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के सवाल का उत्तर देने से इनकार किया।
गुजरात चुनाव (2002): सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को बरकरार रखा।
2G स्पेक्ट्रम लाइसेंस (2012): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक संसाधनों का वितरण केवल नीलामी के माध्यम से करना संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है।
परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
अनुच्छेद 143(1): राष्ट्रपति की सलाहकार शक्ति
अनुच्छेद 145(3): पाँच जजों की बेंच द्वारा सुनवाई
अनुच्छेद 142: “पूर्ण न्याय” के लिए सुप्रीम कोर्ट की विशेष शक्ति
अनुच्छेद 201: राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों पर निर्णय
राष्ट्रपति की सलाह बाध्यकारी नहीं, लेकिन इसका प्रशासनिक और राजनीतिक महत्व है
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संविधान के अनुच्छेद और उनकी व्याख्या – Atharva Examwise
राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियाँ – Atharva Examwise
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले – Atharva Examwise
आपके परीक्षा की तैयारी के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है
संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या: UPSC, PCS और अन्य परीक्षाओं में अनुच्छेद 143, 142, 145, 201 जैसे संवैधानिक अनुच्छेदों से जुड़े प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं।
समसामयिक मुद्दों की समझ: राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के बीच सलाहकार संबंध, न्यायिक समीक्षा, और केंद्र-राज्य संबंधों के समकालीन उदाहरण उत्तर लेखन और साक्षात्कार के लिए जरूरी हैं।
केस स्टडी और उदाहरण: ऐतिहासिक राष्ट्रपति रेफरेंस के उदाहरण आपके उत्तर को तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक बनाते हैं।
समाचार विश्लेषण: इस घटनाक्रम से राज्यपाल, राष्ट्रपति और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन पर गहन चर्चा संभव है – जो UPSC के GS-II, Polity और Essay पेपर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
इस विषय की गहराई से तैयारी आपको न केवल प्रीलिम्स बल्कि मेन्स और इंटरव्यू में भी बढ़त दिलाएगी। ऐसे संवैधानिक और समसामयिक मुद्दों पर अपडेट रहना, उत्तर लेखन और विश्लेषणात्मक क्षमता के लिए जरूरी है।