पिथोरा चित्रकारी: एक परिचय
पिथोरा चित्रकला भारत की एक प्राचीन और पारंपरिक आदिवासी भित्तिचित्र कला है, जो मुख्यतः भील, राठवा, नायक और भिलाला जनजातियों द्वारा उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में बनाई जाती है। इसका उद्गम मध्य प्रदेश के पिथोरा क्षेत्र में हुआ, लेकिन यह गुजरात के बड़ोदा जिले के तेजगढ़ और छोटा उदयपुर सहित राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी प्रचलित है1
पिथोरा चित्रकारी की परंपरा और धार्मिक महत्व
धार्मिक अनुष्ठान: पिथोरा चित्रकला को घर की भीतरी दीवारों पर मुख्य रूप से पिथोरा त्योहार या किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के बाद बनाया जाता है। इसे शुभ, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है1
कला का उद्देश्य: यह चित्रण ईश्वर को धन्यवाद देने, बीमारियों या समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। पिथोरा बाबा को प्रसन्न करने का यह एक माध्यम है
कला की प्रक्रिया: चित्रण की शुरुआत 'लिपाई' से होती है, जिसमें दीवारों को गाय के गोबर, मिट्टी और सफेद चूना से तैयार किया जाता है। रंग प्राकृतिक स्रोतों से बनाए जाते हैं
पुरुष प्रधान परंपरा: चित्रकारी मुख्य रूप से पुरुष कलाकारों (लखाड़ा/लखारा) द्वारा की जाती है, जबकि दीवार की तैयारी में अविवाहित लड़कियां भाग लेती हैं। धार्मिक अनुष्ठान 'बडवा' (मुख्य पुजारी) द्वारा संपन्न कराए जाते हैं1
पिथोरा चित्रकला की विशेषताएँ
चित्रण स्थल: घर की तीन भीतरी दीवारें (मुख्य दीवार और दोनों ओर की दीवारें)।
प्रमुख पात्र: घोड़े, बैल, हाथी, सूर्य, चंद्रमा, पेड़, पक्षी, ग्रामीण जीवन के दृश्य, आदि1
रंग: सफेद (चूना), लाल (सिंदूर/वर्मिलियन), हरा (पत्तियों से), काला (कालिख), अन्य प्राकृतिक रंग।
अनूठापन: हर पिथोरा चित्र अद्वितीय होता है; कोई दो चित्र एक जैसे नहीं होते1
आधुनिकता: अब ये चित्र कागज, केनवास और कपड़े पर भी बनाए जाते हैं, जिससे यह कला शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रही है1
परीक्षा दृष्टि से मुख्य तथ्य (Key Takeaways)
पिथोरा चित्रकला भील, राठवा, नायक और भिलाला जनजातियों की पारंपरिक भित्तिचित्र कला है।
यह चित्रकला मुख्यतः मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है।
धार्मिक अनुष्ठानों, विशेषकर पिथोरा त्योहार के समय, घर की भीतरी दीवारों पर बनाई जाती है।
चित्रण पुरुष कलाकारों द्वारा, दीवार की तैयारी अविवाहित लड़कियों द्वारा, और अनुष्ठान मुख्य पुजारी 'बडवा' द्वारा संपन्न होता है।
प्रमुख चित्रण: घोड़े, बैल, हाथी, सूर्य, चंद्रमा, ग्रामीण जीवन के दृश्य।
चित्रकला का उद्देश्य: ईश्वर को धन्यवाद देना, समृद्धि, शांति और शुभता की कामना।
अब यह कला कागज, केनवास, कपड़े पर भी बनाई जाती है, जिससे इसका संरक्षण और प्रचार हो रहा है।
निष्कर्ष: परीक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? (Why this matters for exams)
पिथोरा चित्रकला भारतीय कला एवं संस्कृति, विशेषकर UPSC, SSC, बैंकिंग और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। यह न सिर्फ आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है, बल्कि भारत की पारंपरिक कलाओं के संरक्षण और उनके बदलते स्वरूप को भी उजागर करती है। "Current affairs March 2025", "daily GK update", "Atharva Examwise current news" और "competitive exam news" की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए यह विषय परीक्षा में पूछे जाने वाले आर्ट एंड कल्चर सेक्शन में अत्यंत उपयोगी है।
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