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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ इन-हाउस जांच क्यों हुई? सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक जांच प्रक्रिया क्या है? जानिए न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांग और NJAC पर बहस।

🔥 क्या है मामला? – जज यशवंत वर्मा पर लगे आरोप

14 मार्च 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर आग लग गई। आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों को बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद हुई। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने प्राथमिक जांच की और इसे गंभीर आरोप मानते हुए CJI को विस्तृत जांच की सिफारिश भेजी।

इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस प्रक्रिया के तहत एक तीन सदस्यीय समिति गठित की है। न्यायिक कार्य न्यायमूर्ति वर्मा से वापस ले लिया गया है और उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया है।

⚖️ इन-हाउस जांच प्रक्रिया क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में एक आंतरिक व्यवस्था (In-house procedure) तैयार की थी, जो 2014 में सार्वजनिक की गई। यह प्रक्रिया उच्च न्यायपालिका के जजों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए अपनाई जाती है।

🔍 इन-हाउस जांच की प्रमुख प्रक्रिया:

CJI के पास शिकायत आती है।

CJI तय करते हैं कि शिकायत गंभीर है या तुच्छ

यदि जांच जरूरी हो, तो:

संबंधित जज से जवाब मांगा जाता है।

उस हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी ली जाती है।

फिर एक तीन-सदस्यीय समिति बनाई जाती है:

दो अन्य हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

एक हाईकोर्ट के जज

समिति जांच कर सिफारिश देती है:

यदि दुराचार गंभीर हो, तो जज को इस्तीफा देने को कहा जाता है

यदि वह इंकार करता है, तो रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी जाती है, जिससे संसद द्वारा महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment) शुरू की जा सकती है।

👉 यह भी पढ़ें: भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया - Collegium बनाम NJAC

👨‍⚖️ जांच समिति में कौन-कौन शामिल हैं?

CJI द्वारा गठित समिति में शामिल हैं:

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश

समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।

🚫 अब तक किसी जज को नहीं मिली आपराधिक सजा – क्यों?

भारत में अब तक किसी भी जज को इन-हाउस जांच के बाद आपराधिक सजा नहीं दी गई है। यह स्थिति न्यायिक जवाबदेही (Judicial Accountability) पर सवाल खड़े करती है।

📌 अंतरराष्ट्रीय तुलना:

यूके (UK) में एक स्वतंत्र और वैधानिक संस्था – Judicial Conduct Investigations Office (JCIO) है, जो जजों पर लगे आरोपों की जांच करती है।

👉 भारत में भी एक स्वतंत्र और स्थायी संस्था की आवश्यकता है जो न्यायिक दुराचार की जांच पारदर्शिता के साथ कर सके।

🏛️ क्या NJAC से हो सकती है न्यायपालिका में पारदर्शिता?

नेशनल जुडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) को 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसका कारण था – यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।

🛠️ मौजूदा Collegium प्रणाली की समस्याएं:

बंद कमरे में फैसले

कोई पारदर्शिता नहीं

जवाबदेही की कमी

✅ सुझाए गए सुधार:

पुनः NJAC की स्थापना, जिसमें:

CJI अध्यक्ष हों

विधायिका, बार काउंसिल, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधि हों

CJI को अंतिम निर्णय का विशेषाधिकार (Veto Power) मिले

इन-हाउस जांच की प्रमुख जानकारी सार्वजनिक की जाए ताकि जनता का भरोसा बना रहे।

📚 निष्कर्ष: न्यायपालिका में पारदर्शिता की ओर एक कदम जरूरी

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला दर्शाता है कि अब न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूती देने का समय आ गया है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच प्रणाली, और सुधारित NJAC के माध्यम से भारत न्यायपालिका में नया विश्वास ला सकता है।

🧠 UPSC, MPPSC और न्यायिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए यह विषय 'राजव्यवस्था', 'नैतिकता', 'संविधान' और 'सामयिक घटनाओं' के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

By Team Atharva Examwise #atharvaexamwise