हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग की 111वीं जयंती पर जानिए उनके योगदान, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जीवन और भारत में उनके कार्य का प्रभाव। पढ़ें पूरी कहानी।
नॉर्मन बोरलॉग: हरित क्रांति के जनक
नॉर्मन बोरलॉग का जन्म 25 मार्च 1914 को अमेरिका के आयोवा राज्य में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1930 के दशक में महामंदी के दौरान गरीबी और खाद्यान्न संकट को करीब से देखा, जिससे उन्हें किसानों की मदद के लिए कृषि विज्ञान को अपनाने की प्रेरणा मिली।
शिक्षा और वैज्ञानिक यात्रा
नॉर्मन बोरलॉग ने पौध रोग विज्ञान (Plant Pathology) में पीएचडी की और इसके बाद मैक्सिको जाकर गेहूं की खेती में सुधार हेतु कार्य किया। उन्होंने बौने गेहूं के पौधों पर शोध कर नई और अधिक उत्पादक किस्में विकसित कीं। इससे 200-300% तक गेहूं की उपज में वृद्धि हुई और अरबों लोगों को भुखमरी से बचाया जा सका।
गेहूं की फसल में क्रांतिकारी बदलाव
बोरलॉग ने पारंपरिक गेहूं की ऊंची किस्मों की समस्या को समझा और जापान की 'नोरिन 10' नामक बौने पौधे की किस्म के साथ नई हाइब्रिड किस्में तैयार कीं। इन किस्मों ने अधिक उपज दी और हवा या भारी अनाज के कारण गिरती नहीं थीं।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित
1970 में नॉर्मन बोरलॉग को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। जब उन्हें यह पुरस्कार मिला, तब वे खेत में काम कर रहे थे। उन्होंने हमेशा खुद को एक किसान ही माना और कहा, "मैं बस एक किसान हूं जो दूसरे किसानों की मदद करना चाहता है।"
भारत और पाकिस्तान की मदद
1960 के दशक में भारत और पाकिस्तान जब अकाल के कगार पर थे, तब बोरलॉग ने वहां अपनी विकसित गेहूं की किस्में पहुंचाईं। भारत ने 1966 में 18,000 टन गेहूं के बीज मंगवाए और 1965 की तुलना में 1968 तक गेहूं का उत्पादन 1.2 करोड़ टन से बढ़कर 1.7 करोड़ टन हो गया।
बोरलॉग ने भारत के हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामिनाथन के साथ मिलकर भी कार्य किया।
हरित क्रांति नाम की उत्पत्ति
1968 में United States Agency for International Development (USAID) के प्रेसिडेंट विलियम गॉड ने पहली बार बोरलॉग के काम को 'Green Revolution' यानी हरित क्रांति का नाम दिया।
भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मान
2006 में भारत सरकार ने नॉर्मन बोरलॉग को पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
नॉर्मन बोरलॉग का जीवन संदेश
बोरलॉग का जीवन संदेश था: "विज्ञान और करुणा को साथ मिलकर काम करना चाहिए।" 12 सितंबर 2009 को 95 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी उनके योगदान को विश्वभर में याद किया जाता है।
निष्कर्ष: क्यों याद रखें बोरलॉग को?
नॉर्मन बोरलॉग सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि वह व्यक्ति थे जिन्होंने वैश्विक खाद्य सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए। उनकी मेहनत और समर्पण ने भारत जैसे विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाया।
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By Team Atharva Examwise #atharvaexamwise