भारत में रोजगार की स्थिति और सरकारी नीतियों का प्रभाव लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। हाल के वर्षों में निजी उद्यमों और कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है, लेकिन इसके विपरीत, मजदूरों और वेतनभोगियों की पगार में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है। यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है कि क्या सरकार द्वारा दी जाने वाली कर छूट और अन्य प्रोत्साहन योजनाएं वास्तव में रोजगार सृजन में मदद कर रही हैं?
कर छूट और रोजगार पर प्रभाव
सरकार द्वारा उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए आयकर और अन्य करों में छूट दी जाती है, ताकि व्यापार और रोजगार में वृद्धि हो। हालांकि, राज्यसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, इन छूटों का लाभ तो उद्योगपतियों ने उठाया, लेकिन उन्होंने इस पैसे का उपयोग नए उद्योग लगाने की बजाय रियल एस्टेट और भूमि खरीदने में किया।
जब सरकार से पूछा गया कि इन कर छूटों के बाद कितनी नई नौकरियां सृजित हुईं, तो जवाब था— 'नहीं मालूम'। यह चौंकाने वाला तथ्य है क्योंकि सरकार को ईपीएफ (EPF), ईएसआईसी (ESIC) और श्रम विभाग से ये आंकड़े आसानी से प्राप्त हो सकते थे।
सरकारी पूंजीगत निवेश और उसका असर
रोजगार सृजन में सरकारी पूंजीगत निवेश की भूमिका अहम होती है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, पूंजीगत निवेश में किया गया प्रत्येक 1 रुपया अर्थव्यवस्था में लगभग 2.50 रुपये जोड़ता है। लेकिन भारत में यह निवेश जीडीपी के अनुपात में चीन, ब्राजील और फ्रांस जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
क्या उद्योगपतियों को कर छूट मिलनी चाहिए?
यदि उद्योगपति नई फैक्ट्रियां और कंपनियां स्थापित करने की बजाय भूमि और रियल एस्टेट में निवेश कर रहे हैं, तो उन्हें कर छूट देने का औचित्य क्या है? क्या यह छूट वास्तव में देश में रोजगार बढ़ाने में मदद कर रही है?
वर्तमान में अमेरिका जैसे देश अपने विशाल प्रशासनिक ढांचे को उत्पादक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भारत को भी अपने दो करोड़ सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के प्रशासनिक तंत्र की उपादेयता का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
रोजगार बढ़ाने के लिए सुधारों की आवश्यकता
टैक्स छूट की समीक्षा – सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर छूट का उपयोग उत्पादन और रोजगार सृजन में हो, न कि केवल संपत्ति बढ़ाने में।
पूंजीगत निवेश बढ़ाना – सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि करने से बुनियादी ढांचे का विकास होगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
श्रम कानूनों में सुधार – रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए श्रम कानूनों को अधिक लचीला और उद्यमियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
MSME सेक्टर को समर्थन – सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र में निवेश और सहयोग बढ़ाने से रोजगार बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
अगर सरकार की नीतियां केवल बड़े उद्योगपतियों को कर लाभ देने तक सीमित रहती हैं और उनका उपयोग उत्पादन के बजाय भूमि खरीदने में होता है, तो इससे रोजगार में वृद्धि नहीं होगी। सरकार को इस दिशा में ठोस नीतिगत बदलाव करने होंगे, ताकि वास्तविक रूप से रोजगार के अवसर बढ़ें और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले।
By : team atharvaexamwise