परिचय
भारत का औद्योगिक विकास सस्ती श्रम शक्ति पर अत्यधिक निर्भर है, जबकि विकसित देशों ने नवाचार और तकनीकी उन्नति के माध्यम से अपनी उत्पादकता बढ़ाई है। लंबे कार्य घंटों और न्यूनतम मजदूरी पर आधारित भारतीय औद्योगिक ढांचा लंबे समय तक वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सकता।
औद्योगिक श्रमिकों का शोषण
हाल ही में पंजाब के लुधियाना में एक अध्ययन में प्रवासी औद्योगिक श्रमिकों की कठिन परिस्थितियाँ सामने आईं। श्रमिक प्रतिदिन 11-12 घंटे तक काम करते हैं और अधिक मांग होने पर लगातार बिना अवकाश के काम करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे अपने बचे हुए समय का उपयोग केवल यात्रा और घरेलू कार्यों में ही कर पाते हैं।
देश के कई उद्योगपतियों द्वारा अधिक कार्य घंटे की मांग करना उनकी असल स्थिति से अनभिज्ञ होने का संकेत देता है। 2023-24 के पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार, भारत में केवल 21.7% श्रमिक नियमित वेतनभोगी नौकरियों में हैं, जबकि बाकी अनियमित या स्व-नियोजित हैं। नियमित श्रमिकों में भी आधे से अधिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा, लिखित अनुबंध या अवकाश जैसी सुविधाएँ प्राप्त नहीं होती हैं।
भारत बनाम विकसित देशों में कार्य घंटे की तुलना
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में औसत साप्ताहिक कार्य घंटे 46.7 हैं, जबकि अमेरिका में यह 38 और जापान में 36.6 घंटे हैं। विकसित देशों ने तकनीकी नवाचार के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाई है, जबकि भारत अब भी सस्ती श्रम शक्ति के सहारे चल रहा है।
सस्ते श्रम पर निर्भरता
भारतीय उद्योग संगठित क्षेत्र से असंगठित क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहा है, जहाँ श्रम कानूनों का पालन नहीं किया जाता। देश की 70% से अधिक विनिर्माण श्रम शक्ति (2021-22 में 68 मिलियन) छोटे, गैर-पंजीकृत उद्यमों में कार्यरत है। लुधियाना और कोयंबटूर जैसे शहरों में छोटे कारखानों में मजदूर पुराने उपकरणों के साथ काम करते हैं और बड़ी कंपनियों को उत्पादन सामग्री की आपूर्ति करते हैं, लेकिन भुगतान में देरी, कच्चे माल की बढ़ती कीमतें और बैंकिंग सहायता की कमी उन्हें कमजोर बनाती है।
अनुबंध श्रमिकों की समस्या
2011 के बाद भारत के फैक्ट्री सेक्टर में शामिल 56% नए श्रमिक अनुबंध आधारित हैं, जो बिना किसी सुरक्षा लाभ के न्यूनतम वेतन पर काम करते हैं। प्रवासी मजदूर, जो अपने गांवों से रोजगार की तलाश में आते हैं, इस प्रणाली का मुख्य हिस्सा बनते हैं।
कम वेतन और अधिक मुनाफा
COVID-19 महामारी के बाद, श्रमिकों के वेतन घटते गए लेकिन उद्योगों का लाभ बढ़ता गया। 2019-20 में मूल्य वर्धित लाभ का अनुपात 31.6% था, जो 2021-22 में बढ़कर 46.4% हो गया। हालाँकि, इस अल्पकालिक लाभ की रणनीति दीर्घकालिक रूप से औद्योगिक विकास को प्रभावित करेगी।
भारतीय वस्त्र उद्योग का ठहराव
भारत के वस्त्र उद्योग का प्रदर्शन अपेक्षानुरूप नहीं रहा है। जबकि सस्ता श्रम भारत को इस उद्योग में बढ़त दिला सकता था, लेकिन भारत का वैश्विक निर्यात हिस्सा 20 वर्षों से मात्र 3.1% पर स्थिर है। चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश नवाचार और प्रबंधन कौशल के माध्यम से भारत से आगे निकल गए हैं।
नवाचार की कमी और उसके दुष्परिणाम
सस्ते श्रम पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारतीय उद्योग तकनीकी अवसरों का लाभ उठाने में विफल रहा है। इसका असर पारंपरिक और नए क्षेत्रों जैसे आईटी उद्योग पर भी पड़ा है। कम मजदूरी और लंबे कार्य घंटे देश के उपभोक्ता बाजार को भी कमजोर करते हैं।
भारतीय उद्योग को नवाचार की ओर बढ़ाने के उपाय
स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में निवेश: उत्पादन प्रक्रिया को आधुनिक बनाना आवश्यक है।
उचित श्रम नीतियाँ: श्रमिकों को बेहतर वेतन, सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए।
छोटे उद्योगों को समर्थन: वित्तीय सहायता और उचित भुगतान प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
कौशल विकास एवं नवाचार को बढ़ावा: अनुसंधान, तकनीकी शिक्षा और कौशल आधारित रोजगार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
निष्कर्ष
केवल श्रम शक्ति का अधिकतम उपयोग करना भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे नहीं ले जा सकता। नवाचार, तकनीकी उन्नति, और कुशल श्रम बल को बढ़ावा देना ही भारत के दीर्घकालिक औद्योगिक विकास की कुंजी है। यदि भारतीय उद्योगपति इस सच्चाई को जल्द नहीं समझते, तो देश का औद्योगिक विकास ठहर सकता है।
By Team Atharva Examwise