भौगोलिक नाम परिवर्तन के पीछे की राजनीति

भौगोलिक नाम परिवर्तन के पीछे की राजनीति: मैक्सिको की खाड़ी से अमेरिका की खाड़ी, न्यू एम्स्टर्डम से न्यूयॉर्क तक

भौगोलिक नाम परिवर्तन अक्सर शासन में बदलाव, स्वदेशी आंदोलनों, उपनिवेशवाद उन्मूलन या राजनीतिक कारणों के परिणामस्वरूप होते हैं। कारण जो भी हो, ऐसे परिवर्तन सार्वजनिक धारणा, ऐतिहासिक पहचान और सांस्कृतिक आख्यानों को प्रभावित करते हैं।

स्थानों के नामों का प्रतीकात्मक महत्व

हाइफ़ा विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक भूगोल के प्रोफेसर माओज़ अज़ारयाहू याद करते हैं कि 1980 के दशक में जब उन्होंने बर्लिन की सड़कों के नामों पर शोध किया, तो लोगों को यह विषय महत्वहीन लगा। लेकिन 1945 के एक दस्तावेज़ से पता चला कि जब सोवियत संघ ने बर्लिन पर कब्जा किया था, तो शहर प्रशासन की पहली बैठक में सड़कों के नाम बदलने को प्राथमिकता दी गई थी। इससे स्पष्ट हुआ कि स्थानों के नाम प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं।

आधुनिक राजनीति में नाम परिवर्तन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर 'अमेरिका की खाड़ी' रखने का प्रस्ताव इस विषय को लेकर चर्चा का कारण बना। हालांकि, इसे आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन अमेरिकी संस्करण के गूगल मैप्स पर यह परिवर्तन देखा गया।

ऐसे नाम परिवर्तन कोई नई बात नहीं हैं। पेरिस कभी लुटेटिया था, न्यूयॉर्क 1665 तक न्यू एम्स्टर्डम था, और टोक्यो का नाम पहले एडो था। संभवतः सबसे प्रसिद्ध परिवर्तन 1930 में कॉन्स्टेंटिनोपल का इस्तांबुल में रूपांतरण था, जो तुर्की की राष्ट्रीय पहचान को दर्शाता है।

उपनिवेशवाद और नाम परिवर्तन

इतिहास में, स्थानों का नाम रखना अक्सर उन पर दावा जताने के बराबर होता था। ब्रिटिश संग्रहालय के मानवविज्ञानी एम.डी.डब्ल्यू. जेफ़्रीज़ के अनुसार, ‘गिनी’ नाम कई स्थानों को केवल इसलिए दिया गया क्योंकि वहां रहने वाले लोग काले रंग के थे। इसी तरह, यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए स्थानों के नाम बदले।

बेथ विलियमसन लिखती हैं कि उपनिवेशवाद के दौरान स्थानों के नाम बदलकर उन्हें व्यवस्थित और वैध बनाने की कोशिश की गई। हाल के वर्षों में, स्वदेशी आंदोलन इन पुराने नामों को पुनः प्राप्त करने के लिए सक्रिय हैं।

स्वतंत्रता के बाद नाम पुनः प्राप्त करना

भारत में, ब्रिटिश शासन के अवशेष मिटाने के लिए शहरों के नाम बदले गए। 1995 में बॉम्बे का नाम मुंबई किया गया, जिसका नाम मराठी देवी मुंबा से प्रेरित था। इसी तरह, कलकत्ता को कोलकाता और मद्रास को चेन्नई नाम दिया गया। ये बदलाव सिर्फ़ प्रतीकात्मक नहीं थे, बल्कि अपनी पहचान को फिर से परिभाषित करने की दिशा में एक कदम थे।

अफ्रीका में भी यह प्रक्रिया देखी गई। 1980 में ज़िम्बाब्वे की राजधानी का नाम सैलिसबरी से हरारे कर दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के बाद कई नाम बदले गए और औपनिवेशिक शासकों के बजाय नेल्सन मंडेला और स्टीव बीको जैसे नायकों के नाम अपनाए गए।

सोवियत संघ में नाम परिवर्तन

सोवियत युग में भी नाम परिवर्तन एक रणनीतिक साधन था। सेंट पीटर्सबर्ग को पहले पेट्रोग्राद और फिर लेनिनग्राद का नाम दिया गया। सोवियत संघ के पतन के बाद, लोगों ने इसके मूल नाम को पुनः प्राप्त किया।

भू-राजनीतिक प्रभाव

फ्रांसीसी क्रांति के बाद से, स्थानों के नाम बदलना शासन का एक साधन बन गया है। हाल के वर्षों में, अमेरिका में गुलामी से जुड़े नामों को हटाने और स्वदेशी संस्कृति को मान्यता देने के प्रयास हुए हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में रोड आइलैंड के आधिकारिक नाम से 'प्रोविडेंस प्लांटेशन' शब्द को हटा दिया गया।

उत्तर मैसेडोनिया का 2018 में हुआ नाम परिवर्तन ग्रीस के साथ विवाद को सुलझाने और नाटो सदस्यता प्राप्त करने के लिए आवश्यक था। इसी तरह, म्यांमार के सैन्य शासन द्वारा 'बर्मा' से 'म्यांमार' नामकरण एक राजनीतिक निर्णय था, जिसे सभी देशों ने स्वीकार नहीं किया।

नाम बदलने की चुनौतियाँ

नाम बदलना एक जटिल और महंगा कार्य है। 2018 में जब स्वाज़ीलैंड का नाम बदलकर एस्वातिनी रखा गया, तो सरकारी दस्तावेज़ों, मुद्रा, सैन्य वर्दियों और संकेतों को अपडेट करने की चुनौती सामने आई।

बॉम्बे से मुंबई के परिवर्तन के बावजूद, आज भी कई लोग पुराने नाम का उपयोग करते हैं। इसी तरह, उत्तरी मैसेडोनिया का नाम बदलने के बावजूद नागरिक इसे अभी भी मैसेडोनिया ही कहते हैं।

नामकरण की शक्ति

नाम परिवर्तन, पहचान को पुनः प्राप्त करने और भविष्य की दिशा तय करने का एक प्रभावशाली तरीका है। चाहे औपनिवेशिक विरासत से मुक्ति हो या सांस्कृतिक पुनरुत्थान, यह बदलाव समाज के गहरे परिवर्तन का प्रतीक है। माओज़ अज़ारयाहू के अनुसार, नामकरण केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि शक्ति का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

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By : team atharvaexamwise