नाभिकीय ऊर्जा: देयता कानूनों को कमजोर करने के खतरनाक परिणाम

नाभिकीय ऊर्जा: देयता कानूनों को कमजोर करने के खतरनाक परिणाम

परिचय

हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act) और नाभिकीय क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damage Act) में संशोधन की घोषणा की है। इस कदम को विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को राहत देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, इस बदलाव के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जो भारत की परमाणु सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।

नाभिकीय देयता क्यों महत्वपूर्ण है?

नाभिकीय क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि परमाणु संयंत्रों की आपूर्ति करने वाले कंपनियों को दुर्घटनाओं के मामले में जिम्मेदार ठहराया जाए। इसका महत्व इस प्रकार है:

  • परमाणु दुर्घटनाएं विनाशकारी हो सकती हैं, जैसा कि फुकुशिमा (2011) और चेर्नोबिल (1986) में देखा गया।
  • परमाणु आपदाओं की लागत खरबों रुपये तक पहुंच सकती है, जिससे देयता कानून जरूरी बनते हैं।
  • आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी कम करने से सुरक्षा उपायों में ढिलाई आ सकती है।

पिछली परमाणु दुर्घटनाओं से सीखने की जरूरत

फुकुशिमा आपदा में रिएक्टर डिज़ाइन की खामियां उजागर हुईं, लेकिन जापान में कमजोर देयता कानूनों के कारण आपूर्तिकर्ता पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यदि भारत भी अपने देयता कानूनों को कमजोर करता है, तो उसे भी ऐसे ही जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है।

भोपाल गैस त्रासदी (1984) भी यह दिखाती है कि जब कंपनियों की जिम्मेदारी तय नहीं होती, तो बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं और उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिलता। इससे स्पष्ट होता है कि मजबूत देयता कानून जरूरी हैं।

देयता कानून कमजोर करने के संभावित परिणाम

1️⃣ आर्थिक बोझ बढ़ेगा

  • परमाणु आपदा की लागत खरबों रुपये तक पहुंच सकती है।
  • यदि आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी कम कर दी जाती है, तो इस नुकसान का पूरा बोझ भारत सरकार और करदाताओं पर पड़ेगा।

2️⃣ सुरक्षा मानकों से समझौता

  • जब कंपनियों को पता होगा कि उन्हें दुर्घटनाओं की कोई बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी, तो वे सुरक्षा उपायों पर अधिक ध्यान नहीं देंगी।
  • फुकुशिमा जैसी घटनाओं में यह देखा गया कि डिज़ाइन खामियों के कारण आपदाएं बढ़ीं।

3️⃣ बिजली की लागत बढ़ सकती है

  • महंगे विदेशी रिएक्टर खरीदने से बिजली की कीमतें अधिक हो सकती हैं।
  • भारत के पास सौर और पवन ऊर्जा जैसे सस्ते और सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं।

राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ

अमेरिका और अन्य विकसित देशों की सरकारें भारत पर दबाव बना रही हैं कि वह अपने देयता कानूनों में ढील दे, ताकि उनकी कंपनियों को अधिक फायदा हो। हालांकि, इस प्रकार के बदलाव भारत के दीर्घकालिक आर्थिक हितों के विरुद्ध होंगे।

इसके अलावा, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर डिज़ाइन (Small Modular Reactors) को अधिक लागत प्रभावी माना जा रहा है, लेकिन इनके निर्माण और संचालन की लागत बहुत अधिक होगी, जिससे यह भारत के लिए आर्थिक रूप से कम लाभदायक साबित होंगे।

भारत को क्या करना चाहिए?

मजबूत देयता कानून बनाए रखें – यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आपूर्तिकर्ताओं को दुर्घटनाओं की स्थिति में जवाबदेह ठहराया जाए।
नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करें – सौर और पवन ऊर्जा अधिक किफायती और सुरक्षित विकल्प हैं।
स्वदेशी परमाणु अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दें – भारत को अपनी परमाणु तकनीक विकसित करनी चाहिए ताकि उसे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर न रहना पड़े।

निष्कर्ष

भारत में परमाणु देयता कानूनों को कमजोर करने से आर्थिक और सुरक्षा संबंधी गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। सरकार को विदेशी कंपनियों के हितों की जगह देश की सुरक्षा और आर्थिक मजबूती पर ध्यान देना चाहिए। मजबूत देयता कानून, पारदर्शी नियम, और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश भारत के लिए एक सुरक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

By : team atharvaexamwise